Monday, November 15, 2010

सिद्धार्थ से बुद्ध बनने की ओर....


मम्मी ,बाल दिवस पर हमें सेवाधाम आश्रम जाना है ,बेटी ने जब आ कर कहा तो मन में एक ख्याल आया,ये स्कूल वाले न पता नहीं क्या क्या फितूर करते रहते है। अब रविवार को सुबह जल्दी उठो टिफिन बनाओ।
जाना जरूरी है क्या?? अपनी सुहानी सुबह को बचाने की एक अंतिम कोशिश करते हुए मैंने पूछा?

हाँ ,हमारा एक टेस्ट इसी पर आधारित होगा,इसलिए जाना जरूरी है।

ठीक है और कोई चारा भी न था,अब तो मार्क्स का सवाल था।

मम्मी ,पता है लोगो के साथ कैसे कैसे होता है। वहा हमें एक १०५ साल की एक बुजुर्ग महिला मिली,जब वो वहा ई थी तब ऐसा लग रहा था की अब बचेगी नहीं,और एक एक औरत और उसका बच्चा तो सूअरों के बीच मिला था।
बेटी ने अपनी यात्रा वृतांत सुनते हुए कहा। वो हतप्रभ थी ,ये जान कर की लोगो के साथ क्या क्या होता है।

और में सोच रही थी अच्छा हुआ स्कूल से उन्हें ले जाया गया ,

ये सिद्धार्थ अब बुद्ध बनने की राह देख चुके है ।


नर्मदे हर

 बेटियों की शादी के बाद से देव धोक लगातार चल रहा है। आते-जाते रास्ते में किसी मंदिर जाते न जाने कब किस किस के सामने बेटियों के सुंदर सुखद जी...