आज एक शादी में अपनी एक कलीग की बेटी से मिली. नाम सुनते ही वह पहचान गयी अरे आप वही है ना जो ब्लॉग लिखती है.में आपको पढ़ती हूँ .सच कहूँ अभी कुछ समय से लेखन से खास कर ब्लॉग लेखन से एक दूरी सी बन गयी थी.वैसे लेखन जारी है .आजकल कुछ कहानियों पर काम कर रही हूँ.सोचती हु उन्हें ही धारावाहिक के रूप में ब्लॉग पर डालूँ लेकिन खैर ये सब समय की बात है .आज सच में मन हुआ की कुछ लिखू.पता नहीं ऐसा सबके साथ होता है या सिर्फ मेरे साथ .जब भी लेखन की एक विधा छोड़ दूसरे पर जाती हूँ पहली विधा कहीं पीछे छूट जाती है. बहुत दिनों से कोई संस्मरण लिखने की सोच रही थी लेकिन क्या ??
कल अलमारी जमाते हुए एक पुरानी डिब्बी खोल के देखी तो उसमे एक छल्ला निकला.उसे उंगली में डालते मन २५ साल पीछे पहुँच गया .ये छल्ला मेरी बुआ की बेटी का था.बस यूं ही बात करते करते उसकी उंगली से निकाल लिया ओर कह दिया मुझे बहुत पसंद है उसने भी कह दिया तो आप रख लो. जिस प्यार ओर अपनेपन से उसने दे दिया था उसे उतने ही प्यार ओर सम्हाल के साथ मैंने बरसों उंगली में डाले रखा. यहाँ तक की जब उतार कर रखा तब भी उसे अपने प्यार में लपेट कर रख दिया. कल उसे उंगली में डालते हुए मन भीग सा गया. हमने अपनी बहुत सारी बातें एक दूसरे से शेयर की हैं.एक दूसरे को लम्बे लम्बे पत्र लिखते थे जिसमे अपने मन की सारी बाते उंडेल देते थे.मुझे याद है वह हमेशा लिखती थी "ह्रदय की अंतरिम गहराइयों से प्यार"उस समय तो उसे कभी नहीं कहा लेकिनये शब्द सच ह्रदय की उसी गहराई में जाकर उसके प्यार का एहसास करवाते थे.
कभी कभी चीज़ें छोटी होते हुए भी उनका असर बहुत गहरा होता है. ऐसे ही एक बहुत पुराने डब्बे में एक छोटे से लाल कागज़ में लिपटी रखी है शमी की दो पत्तियां जिन्हें हायड्रोजन पर oxaid में सुनहरा बनाया था .ये मेरी उस सहेली की प्यार की निशानी है जिसके साथ लगभग हर शाम गुजरती थी.बस साथ साथ कहीं घूमना ओर ढेर सारी बाते करना उस साल दशहरे पर में शहर के बाहर थी जब लौटी उसने कहा ये ले तेरा सोना कब से संभाल के रखा है .आजकल के बच्चे जो बाते समस या चाट पर करते है हम वो बाते रूबरू करते थे .उन बातों का असर देखते थे.ओर क्या कहना है क्या नहीं ये सीख जाते थे.समस की बातों से बाते तो होती है लेकिन उससे किसी की भावनाओ को समझने में उतनी मदद नहीं मिलती है ऐसा मुझे लगता है.
जब में १० वीं में थी मेरे छोटे भाई ने मुझे एक पेन गिफ्ट किया था .सालों लिखते लिखते उसकी निब घिस कर इतनी चिकनी हो गयी थी ओर उससे राइटिंग बहुत बढ़िया आती थी. कई बरसों वह पेन मेरे पास रहा फिर जाने कहाँ गुम हो गया. लेकिन अभी भी जब एक पेन लेने की सोचती हूँ ओर दुकान पर देखती हूँ हर पेन में वही ग्रिप ओर वही स्मूथ्नेस ढूंढती हूँ लेकिन नहीं मिलती तो पेन छोड़ कर बाहर आ जाती हूँ. लेकिन वह पेन मन से नहीं निकल पता ओर उसकी याद पर किसी ओर पेन को हावी नहीं होने देना चाहती.
ऐसा ही एक तोहफा दिया था पति देव ने. शादी के बाद के वो दिन जब जेब खाली थी एक दिन ऐसे ही कह दिया था मैंने, मेरे पास नेल कटर नहीं है .पता नहीं कैसे जबकि मुझे पता था की एक एक पैसा हिसाब से खर्च करना जरूरी है एक शाम घर लौटते मेरे हाथ पर नेल कटर रख दिया था उन्होंने. कहने को जरूरत की एक छोटी सी चीज़ लेकिन कैसे किया होगा नहीं जानती.आज वो नेल कटर काम नहीं करता लेकिन अगर अपनी तय जगह से जरा इधर उधर हो जाये तो ऐसा लगता है मानों सब कुछ खो गया. इसके बाद अनगिनत उपहार उन्होंने दिए लेकिन वह एक नेल कटर आज भी हाथ में आते मन को भिगो देता है .
ऐसे ही कुछ उपहार बहुत भावनात्मक होते है जो ऐसे संभाल के नहीं रखे जाते लेकिन उनका एहसास कभी मरता नहीं. फिर वो चाहे पहली बार हाथों में हाथ लेना हो या फिर चेहरे पर आये बालों को पीछे कर माथे पर प्यार की मोहर अंकित करना एक छोटा सा हग हो या प्यार भरी पहली नज़र.
जिंदगी की आपाधापी में जब आप थक जाये या सब होते हुए भी मन कहीं उदासी की गलियों में पहुँच जाये एक छोटा सा छल्ला ,एक साड़ी पिन ,किसी के कहे कोई शब्द कोई स्पर्श घर का कोई एक खास कोना या मन के किसी खास कोने में जमा बहुत खास पल ,आपको उन उदासी की गलियों से खींच कर बाहर ले आते है ओर खुशियों की गलियों में मुस्कुराने को विवश कर देते हैं.
खुशियों का खज़ाना.