Monday, June 30, 2014

नेपथ्य

नेपथ्य 
तेल चाल उखड़ी सांसे थकित तन और डूबता मन लिए वह चला जा रहा था कहाँ खुद भी नहीं जानता। उदासी ज्यादा गहरी थी या अन्धकार ये सोचने का ध्यान कहाँ था। आगे रास्ता है या नहीं ये समझने की कोशिश ही कहाँ की बस चलता रहा मानो मन की गति को मात देने भाग रहा हो बिना रुके बिना सोचे। मन छले जाने से व्यथित था या कुछ न कर पाने से ये भी तो नहीं पता। जीवन के झंझावातों से थक चुका था वह और अब तो उसके पैरों के नीचे से जमीन ही छीन ली गई थी। मन की गति ने थका दिया तो पैरों की गति अपने आप थम गई सामने अपार विस्तार सागर लहरा रहा था। लहरें किनारे पर सर पटक पटक ना जाने किस परेशानी को सुलझाने की कोशिश में लगी थीं।
किनारे खड़ा प्रकाश स्तम्भ पूरी ताकत से दूर तक रौशनी बिखेर रहा था वह वहीँ किनारे बैठ गया। लहरों पर पड़ती प्रकाश किरणे झंझावातों के कारण द्विगुणित हो कर ज्यादा चमक बिखेर रही थीं। बादलों की कालिमा के नेपथ्य में रोशनी की चमक कई गुना बढ़ कर ज्यादा दूर तक भटकों को राह दिखा रही थी।
इस विचार ने मानों उसके मन को प्रकाशित कर दिया।

6 comments:

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  2. सकारात्मक भाव ...सुंदर ...!!

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  3. अगर कोशिश की जाए तो गहन निराशा में भी प्रकाश की किरण दिखाई दे जाती है..बहुत सुन्दर प्रस्तुतीकरण...

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  4. वो कहते है न .........every dark cloud has silver shine....

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नर्मदे हर

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