Friday, September 30, 2016

अब हमारी बारी

  
देश की सरहदों पर तैनात हमारे जवान हमेशा अपनी जान हथेली पर लिये देश की रक्षा में लगे रहते हैं। जान देने की बारी आने पर एक पल के लिए भी नहीं सोचते ना खुद के बारे में ना अपने परिवार के बारे में। जिस तरह हम अपने घरों में इस विश्वास के साथ चैन से सोते हैं कि सरहद पर सैनिक हैं उसी तरह वे विश्वास करते हैं कि पीछे से देश की जनता और सरकार है जो उनके परिवार की देखभाल करेगी। किसी भी जवान की शहादत पर लोगों में भावनाओं का ज्वार उठता है उसकी अंतिम यात्रा में पूरा गाँव शहर उमड़ता है सरकार तुरंत मदद घोषित कर देती है। हर प्रदेश सरकार अपनी सोच की हैसियत के अनुसार मदद घोषित करती है। अब जिनकी सोच में ही दिवालियापन हो वह उसी के मुताबिक मदद घोषित करते हैं। हाँ लोगों के गुस्से मीडिया की लानत मलानत से कभी कभी सोच परिष्कृत हो जाती है और स्तर बढ़ जाता है सोच का भी और मदद का भी। 
खैर मुद्दा प्रदेश सरकार या राजनैतिक पार्टी की सोच का नहीं है मुद्दा है इन सैनिक परिवारों की सच्ची मदद और उनके सही हाथों में पहुँचने का। कई बार होता यह है कि भावनाओ के अतिरेक में घोषणाएं तो हो जाती हैं पर उनपर अमल कब और कितना होता है इसे जाँचने वाला कोई नहीं होता। 
हाल ही में उरी में और इसके पहले भी सीमा पर होने वाली घटनाओं के कारण मारे गये सैनिकों की अंतिम यात्रा के प्रसारण को देखते हुए महसूस हुआ कि अधिकतर सैनिक सुदूर ग्रामीण इलाके के हैं और उनकी सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। अधिकतर के परिवार में माता पिता , पत्नी या तो पढ़े लिखे नहीं हैं  बहुत कम पढ़े लिखे हैं। ऐसे में सरकारी और कानूनी पेचीदगियों को समझना और मदद पाने के लिए सही द्वार तक पहुँचना इनके लिए मुश्किल होता है। ऐसे में कोई रिश्तेदार कोई बिचौलिया मदद के नाम पर इनके साथ हो लेता है और वह मदद इन तक पहुँचने के पहले ही हड़प ली जाती है या उसके हिस्से हो जाते हैं। एक साथ मिली रकम का यथोचित उपयोग और इंवेस्टमेंट करने में वे लोग असफल होते हैं और मतलबपरस्त की धोखाधड़ी का शिकार हो सकते हैं।
अगर पत्नी दूसरी शादी कर ले तो बूढ़े माता पिता बुढ़ापे में आर्थिक परेशानियों से घिर जाते हैं भाईबहन का भविष्य अंधकार में डूब जाता है। जब परिवार की भूखों मरने की स्थिति आती है और वे भटकते हुए मीडिया तक पहुँचते हैं तो बिना जमीनी सच्चाई जाने सरकार को कोसना शुरू हो जाता है। 

दरअसल अब ऐसी मदद या मुआवजे को शहीद के परिवार की जरूरत का ध्यान रखते हुए पूरी योजना बना कर  देने की जरूरत है। होना यह चाहिये कि सैनिक पर निर्भर परिजनों की पूरी जानकारी सेना के पास होनी चाहिये। जिसमे भाई बहनों की जिम्मेदारी का एवरेज टाइम पीरियड शामिल हो। जैसे अगर भाई 18 साल का है और पिता की कोई आय नहीं है आगे कितने साल में अपनी पढाई पूरी कर अपने पैरों पर खड़ा हो सकता है या बहन की शादी कितने साल में करने का इरादा है। ऐसे ही बच्चों की उम्र उनकी जिम्मेदारी जरूरतों का मोटा हिसाब होना चाहिए। 

प्रदेश सरकारों द्वारा दी गई मदद मुआवजे का कुछ हिस्सा माता पिता को और कुछ पत्नी और बच्चों के नाम से बराबरी से बाँटी जाना चाहिए जो तुरंत मदद के लिए हो और यह बहुत ज्यादा नहीं होना चाहिये। बाकी पैसा अलग अलग हिस्सों में बाँट कर उसकी एफ डी बनवाना चाहिये जो उन्हें अगले बीस बाइस सालों तक ब्याज और मूल देती रहे जब तक बच्चे अपने पैरों पर ना खड़े हो जाएँ। पत्नी को मृत्युपर्यंत पेंशन तो मिलना ही चाहिये। 
ये ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि ये सैनिक हमारे और सरकार के भरोसे अपने परिवार को हमारे भरोसे छोड़ जाते हैं उनके लिए हमारे दिलों में बहुत मान सम्मान है उनके परिवार से सहानुभूति है और उसे सही दिशा दे कर हमें अपना फ़र्ज़ निभाना है। 
कविता वर्मा 


8 comments:

  1. पूर्णतः सहमत ... यदि ऐसा हो तो एक सैनिक के प्रति कुछ तो ज़िम्मेदारी निबाह सकें .

    ReplyDelete
  2. सही और तार्किक बात रखी है आपने सहायता में जिम्मेदारी भी छुपी होनी चाहिए।

    ReplyDelete
  3. सही और तार्किक बात रखी है आपने सहायता में जिम्मेदारी भी छुपी होनी चाहिए।

    ReplyDelete
  4. सहमत हूँ आपसे...बहुत अच्छी सोंच...

    ReplyDelete
  5. आपकी बात से सहमत हूँ, आपके द्वारा उठाये गए सारे सवाल वाजिब है, सरकार को इन सुझावों पर गौर करना चाहिए । आपकी इस चिंता के लिए साधुवाद ।

    ReplyDelete
  6. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल रविवार (02-10-2016) के चर्चा मंच "कुछ बातें आज के हालात पर" (चर्चा अंक-2483) पर भी होगी!
    महात्मा गान्धी और पं. लालबहादुर शास्त्री की जयन्ती की बधायी।
    साथ ही शारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएँ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  7. आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति कादम्बिनी गांगुली और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।

    ReplyDelete
  8. जय हिन्द । जय माता दी 🌷🌷🌷

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणियाँ हमारा उत्साह बढाती है।
सार्थक टिप्पणियों का सदा स्वागत रहेगा॥

नर्मदे हर

 बेटियों की शादी के बाद से देव धोक लगातार चल रहा है। आते-जाते रास्ते में किसी मंदिर जाते न जाने कब किस किस के सामने बेटियों के सुंदर सुखद जी...