Thursday, November 3, 2016

जब पाँच बजे आसमान तारों से भर गया

पंद्रह दिन के अपने टूर में गुवाहाटी दार्जिलिंग और सिक्किम गये थे। लिखना तो सभी के बारे में है पर कुछ यादें ज्यादा याद आती हैं और उन्हें लिखने की इच्छा हो जाती है। ये यात्रा वृतांत थोड़ा बेतरतीब लगेगा पर उम्मीद है आपको अच्छी सैर भी करा देगा। 
  
19 अक्टूबर 2016 (8th day )
सिक्किम की राजधानी गंगटोक के बारे में काफी सुना था।  धुल धुंए रहित बिना शोर शराबे के एक शांत पहाड़ी शहर जो राजधानी भी है। हम गंगटोक पहुंचे दोपहर करीब दो बजे। होटल की लॉबी में पहुँच  तबियत जितनी खुश हुई कमरे में पहुँचते ही मूड ख़राब हो गया। सजा धजा साफ़ सुथरा रूम लेकिन बाहर की तरफ कोई खिड़की नहीं और बंद कमरे रहना मानो सज़ा। दार्जिलिंग में भी होटल का रूम पसंद नहीं आया था तब make my trip फ़ोन करके उसे अपग्रेड करवाया था जिसमे करीब आधा पौन घंटा लग गया। अब यहाँ फिर वह सब दोहराने की हिम्मत नहीं बची थी। एक तो पहाड़ी रास्ते का चार घंटे का सफर और साथ में चार घंटे लगातार बजते गानों ने सारी शक्ति छीन ली थी अब तो बस फ्रेश होकर खाना खाकर आराम करने का मन था। फिर सोचा सिर्फ रात में सोना ही तो है तो क्या फर्क पड़ता है ?
खाने का मेन्यू देखा कुछ खास पसंद नहीं आया फिर सोचा सिर्फ दाल रोटी आर्डर करते हैं शाम को बाहर खाएंगे। जब खाना आया रोटी इतनी छोटी छोटी थीं कि एक रोटी दो तीन कौर में ही ख़त्म हो गई और बुलवाते तो पता नहीं कितनी देर लगती इसलिए साथ लाये नाश्ते में से कुछ निकाला और उदरस्थ किया। ठण्ड तो थी खाने के बाद और तेज़ लगने लगी तो थोड़ी देर लेट गए रजाई कम्बल की गर्मी मिलते ही नींद लग गई। 
शाम साढ़े चार बजे घडी देखी तो सोचा थोड़ी देर और फिर एम जी रोड (माल रोड ) चलते हैं। तैयार हो कर बाहर आये तो पाँच बजकर दस मिनिट हुए थे और अँधेरा हो चुका था आसमान में तारे टिमटिमा रहे थे। कमरे से बाहर का कोई नज़ारा दिख नहीं रहा था बस घडी के हिसाब से समय देखा। ( जी हाँ वहाँ पता चला समय सिर्फ घड़ी में नहीं खुले आसमान पर भी दिखाई देता है। ) सुदूर पूर्व में सूर्योदय भी जल्दी होता है और सूर्यास्त भी। एम जी रोड करीब ढाई तीन किलोमीटर दूर था टैक्सी का इंतज़ार करते एक गाड़ी को हाथ दिया और वह रुक भी गई लेकिन वह टैक्सी नहीं थी। सिक्किम का बंदा था शायद उसे भी अजनबियों से बात करने का शौक था (मुझे भी है ) . उसने सिक्किम और गंगटोक के बारे में कई बातें बताई जैसे वहाँ हॉर्न बजाना पब्लिक प्लेस पर सिगरेट पीना मना है पर लिकर (शराब ) कोई भी कभी भी कहीं भी पी सकता है। ज्यादातर लोग पर्यटन पर निर्भर हैं। सिक्किम के चार जिले हैं उनमे से हमें कहाँ कहाँ घूमना चाहिये वगैरह वगैरह। बातचीत में ही पता चला कि जैसे हमें सुदूर पूर्वी प्रदेशों के बारे में बहुत कम जानकारी है वैसे ही वहाँ के लोगों को भी देश के अन्य प्रदेशों के बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं है। दुःख हुआ कि इतने सालों में हम अपने देश के हर प्रदेश को और उनके बाशिंदों को ही एक दूसरे से नहीं जोड़ पाये। 
माल रोड या एम जी रोड के शुरुआत में गाँधी जी की बड़ी सी प्रतिमा है। वहाँ वाहन प्रतिबंधित है। रोड डिवाइडर से दो भागों में विभक्त है और काफी चौड़ा साफ सुथरा और चौकोर पत्थरों से जड़ा है। दोनों तरफ सुसज्जित दुकानें कई नई और पुरानी जगमगाती इमारतें। बीच में डिवाइडर पर हरियाली बैठने के लिये बेंचेस और हर पचास मीटर पर डस्टबिन। ऐसा लग रहा था जैसे विदेशी धरती पर हों। ( यकीन मानिये ऐसा लिखना मुझे भी बुरा लग रहा है लेकिन ऐसी साफ़ सफाई और अनुशासन कम ही जगहों पर देखने को मिलता है। ) काफी देर वहीँ बैठे रहे टूरिस्ट इनफार्मेशन सेंटर से घूमने के लिए कुछ जानकारी जुटाई। वैसे तो अब कई ब्लोग्स हैं जिनपर सभी कमी खूबियों के साथ ज्यादा अच्छी जानकारी मिल जाती और हम वह लेकर गए थे। वहाँ दो वेज रेस्टॉरेंट दिखे उन्हीं में से एक 'परिवार रेस्टॉरेंट' में बिरियानी खाई। हरी सब्जियाँ वहाँ कम ही मिलती हैं रोटी मिल जाती है पर दिन की पूरी के आकार की रोटी के बाद मन नहीं हुआ। ज्यादा भूख नहीं थी इसलिए गर्मागर्म बिरियानी ही खाई। 
एम रोड के लगभग आखिर में थोड़ा नीचे उतर कर लाल बाजार है जो थोड़ा सस्ता है। आठ बजे तक बाजार बंद होने लगता है। लौटते हुए आइसक्रीम खाई। मैं आइसक्रीम लेकर बाहर आ गई तो दुकान के सामने डस्टबिन में मैंने रैपर डाल दिया जबकि हस्बैंड ने दुकानदार को पैसे देकर वहीँ रैपर खोला जिसे दुकानदार ने लेकर अपने काउंटर पर एक डब्बे में रख लिया। 
सिक्किम में हर नागरिक अपने शहर अपने राज्य की साफसफाई के लिये खुद को जिम्मेदार मानता है इसका पहला प्रत्यक्ष उदाहरण सामने था। 
क्रमशः 
कविता वर्मा 

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